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Financial Report

डिजिटल अर्थव्यवस्था : बेरोज़गारी एवं गरीबी निवारण

                                                                                        “एक आकर्षक सोने का है पुतला,

                                                                          जो शायद पैरों से है जरा खोखला।”

बीते दशक में भारत को एक डिजिटलीकृत व नकदी रहित राष्ट्र बनाने की दिशा में उठाए गए कदमों के सार को इन पंक्तियों से समझा जा सकता है।सरकारों व निजी प्रतिनिधियों द्वारा लाई गई कईं सुविधाएँ जैसे जाम योजना (जनधन -आधार-मोबाइल), यू.पी.आई व अन्य डिजिटल भुगतान के साधन, क्रिप्टोमुद्रा, ई-नाम मंडी, ई-रुपया आदि ने आर्थिक परिदृश्य को तब्दील कर दिया है। आइए देखते हैं कि यह हमारी अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख दिक्कतें – गरीबी एवं बेरोज़गारी के निवारण में यह कितने सफ़ल रहे हैं।

 

गरीबी  

डिजिटल अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख स्तंभ कहे जा सकते हैं – मोबाइल, जालघर (इंटरनेट) व बैंक खाता। भारतीय सरकारों ने पूरा जोर लगाया है हर वर्ग, चाहे अमीर या गरीब, को यह उपलब्ध कराने में। केन्द्रीय सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’, ‘भारतनेट’ आदि कार्यक्रमों के माध्यम से 2022 में करीब 120 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं, करीब 83 करोड़ के पास इंटरनेट भी है। 

 

वहीं 2014-15 में लागू की गई जाम योजना एक बड़े वर्ग को बैंकिंग से जोड़ने में इस कदर कामयाब रही है कि आठ वर्षों में 47 करोड़ खातें खोले गए हैं। 2013 में शुरु की गई प्रत्यक्ष लाभ भुगतान (Direct Benefit Transfer) लाभार्थियों के लिए वरदान साबित हुई है।शुरुआत से आर्थिक वर्ष 2022-23 तक अब तक 26,22,451 करोड़ के भुगतान 97 करोड़ से अधिक खाताधारकों को अब तक किए जा चुके हैं। आज से कुछ बरस पहले जो एक मुद्दा था कि सरकार अगर एक रुपया खर्च करती है तो जनता के पास लालफीताशाही एवं भ्रष्टाचार के कारण 15 पैसें पहुँचते हैं, इस विवाद को काफी हद तक शांत किया गया है।

 

 

 

 

 

 

 

त्री.ई-विद्या, स्वयं, भारतनेट आदि कार्यक्रमों के भी दूरगामी प्रभाव बुनियादी ढाँचे के निर्माण में दीर्घ काल में अवश्य देखे जा सकते हैं।

 

पिछले एक दशक में देश के इन प्रयासों से बड़ी सफलता प्राप्त हुई है और ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनता का अनुपात महामारी के ठीक पहले तक 2011 के 22% से घटकर 2019 में क़रीब 10% ही रह गया था। परंतु ग़रीबी निवारण की योजनाओं के संबंध में कुछ कमियाँ भी हैं।

 

जनधन खातों के साथ सामने आया है की इनमें से एक बड़ी संख्या में खाते असक्रिय हैं, व सक्रिय खातों के कम संतुलन के कारण बैंकों को उनके प्रबंधन में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।

 

भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे निचले तबके के 20% लोगों में केवल 9% के पास ही इंटरनेट की सुविधा है और केवल 3% के पास संगणक/कंप्यूटर है। इसके अतिरिक्त भारत की ग़रीबी रेखा के नीचे की जनसंख्या का एक बड़ा भाग अनुसूचित जनजाति और जाति का है, जो बड़े स्तर पर अभी भी डिजिटल माध्यमों से दूर हैं। 

बेरोज़गारी

गरीबी का एक प्रमुख कारण, “बेरोज़गारी” को हटाने में डिजिटल अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन मिश्रित दिखाई दे रहा है। “फॉरेस्टर” की एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2040 तक भारत के वर्तमान के 69% रोजगार, स्वचालन व कृत्रिम बुद्धिमत्ता “(ए.आई.)” के कारण ओझल हो सकते हैं। कईं व्यवसाय, जैसे - फैक्ट्री श्रमिक, बैंक लिपिक, मुनीम, कैशियर, टैक्सी चालक आदि आनेवाले दशक तक विलुप्त होने की कगार पर आ सकते हैं, विशेषकर महानगरों में।कम लागत, अधिक कार्यकुशलता, बीमारी, पारिवारिक कार्यों आदि से कार्य में बाधा पड़ने की गुंजाइश ना होना जैसे कईं कारणों से अधिक से अधिक कंपनियाँ स्वचालन संबंधी प्रौद्योगिकी को अपना रही हैं।

कोरोना महामारी के समय शुरू हुआ वर्क फ्रॉम होम भी कई लोगों के लिए घातक साबित हुआ है।लॉकडाउन समाप्ति के बाद भी 50% से अधिक कंपनियाँ घर और दफ़्तर, दोनों जगहों के मिश्रण से काम करने के पक्ष में है, व 10% से अधिक भर्तियाँ तो स्थायी वर्क फ्रॉम के लिए ही होने की संभावना है।इस कारण निश्चित ही टैक्सी चालकों के रोज़गार पर बड़ा असर पड़ा है और आगे भी पड़ेगा।

हालाँकि ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ़ रोज़गार ख़त्म होंगे इस डिजिटल युग में। बहुत से नयें कार्य, जैसे एल्गोरिदम डेवलपर, बृहत् डेटा विश्लेषक, उपभोक्ता अनुभव विशेषज्ञ, रोबोटिक्स, डिजिटल बाज़ारी आदि आनेवाले दो दशकों में देश में क़रीब 17 करोड़ रोज़गार के अवसर पैदा करेंगे।

कई डिजिटल स्टार्टअप उभर कर सामने आ रहे हैं जो अलग - अलग तरह के व्यवसायियों को ई-कॉमर्स के माध्यम से अपना कारोबार बढ़ाने में मदद कर रहे हैं, और इस प्रकार रोज़गार सृजन में, और विशेषकर ग्रामीणों व महिलाओं को काम देने में सफल हो रहे हैं। मिशो, हेसा, फ्रंटियर मार्केट्स, उड़ान, डीलशेयर ऐसे ही कई कामयाब उदाहरण हैं। सरकार ने भी अपने उपक्रमों जैसे ई-नाम व ई-मार्केटप्लेस के माध्यम से क्रमशः 1.70 करोड़ से अधिक किसानों एवं 56 लाख से अधिक विक्रेताओं को एक मंच प्रदान किया है।

परंतु यहाँ प्रश्न उठता है डिजिटल साक्षरता का।उन 69% नौकरियों में कार्यरत लोगों में से कितनों के पास वो अवसर हैं और कितनों के पास वो सुविधाएं हैं यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता व डिजिटल तकनीकें सीखने की? वो कई हज़ारों चालक, श्रमिक आदि जो मूल शिक्षा भी नहीं ले पाएँ हैं, क्या वो एकदम अनजान तकनीकों को सीख पायेंगे? 

ई-नाम एवं ई-मार्केटप्लेस से संबंधित भी यह परेशानी है कि यह अभी शुरुआती दौर में हैं और इनके बारे में अभी जागरूकता का प्रसार अभी काफ़ी बड़े स्तर पर होना है। जैसे - 7 करोड़ से अधिक किसानों के घर बिहार में अभी भी एक भी ई-नाम मंडी नहीं है, वहीं एक सर्वेक्षण अनुसार 80% किसान अभी भी अपूर्ण, बिल्कुल बुनियादी या न्यून जानकारी रखते हैं डिजिटल बाज़ार के बारे में।

डिजिटल साक्षरता - सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र 

इस डिजिटल युग में इन दोनों दिक्कतों का सबसे बड़ा समाधान है डिजिटल साक्षरता। भारत में जालघर तो करीब 60% जनता के पास है, पर जालघर से क्या क्या काम संभव हैं, यह 25% लोग भी नहीं जानते। भारत में अभी भी लोग इंटरनेट का सर्वाधिक प्रयोग अपने प्रियजनों से जुड़ने या वीडियो आदि देखने हेतु लेते हैं।40% ग्रामीण भारत डिजिटल भुगतान की सुविधाओं से अनभिज्ञ है। अब समय आ चुका है कि हमारी शिक्षा एवं प्रशिक्षण नीति में प्रौद्योगिकी एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एक विशेष स्थान दिया जाए। समय की प्रबल आवश्यकता है की सरकारें व निजी क्षेत्र भी अपने संसाधनों का रुख़ इस दिशा में करें, वरना भारत को एक बहुत बड़े संकट से जूझना पड़ सकता है, जहां केवल कुछ हाथों में अर्थव्यवास्था की बागडोर है, और बाक़ी सब कठपुतली के स्तर पर भी नहीं है।

कोरोना महामारी के पश्चात भारत ने ग़रीबी एवं बेरोज़गारी में घटाव की जगह विकास देखा है। अतः अत्यंत आवश्यक है कि डिजिटल माध्यमों की जागरूकता फैले, और इसमें क्षेत्रीय विकेंद्रित सरकारें व सभाएँ एक अहम किरदार बनाएँ

 Yes, it's important to have a national digital currency since the market is so volatile people are reluctant towards cryptocurrencies and they are not able to develop faith in crypto.  so if there is a national issuing authority, it would be easy for people to have faith in the currency because people tend to have a sense of trust towards government, government banks. currency etc. It will give them a sense of security as they believe the government must have taken necessary measures and there is no scam.

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Harit Jain

Hindu College, Delhi University

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