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मंदिरों पर ध्यान दीजिए

शार्क टैंक सूत्रधार - तो अब बारी है हमारे आखिरी ऑंट्रेप्रेन्योर्स की। शार्क्स तैयार रहिएगा। (दो लोग एक रौशन कमरे में प्रवेश करते हैं, जहाँ 3 शार्क्स अपनी - अपनी जगह पर विराजमान हैं। उनके आते ही “हरे राम! हरे राम! हरे कृष्णा! हरे राम!” गाना बजने लगता है। गाने के इन बोल के बाद गाना रुकता है और दो में से एक जन बोलना शुरू करते हैं।)

लक्ष्मीपति : “ शार्क्स, एक बार आप ज़रा आँख बंद करके शांति से इमैजिन करें। आप सब अपने परिवार के साथ घर से निकले हैं, शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने। आपने सफ़र की शुरुआत की शिरडी - कालका एक्सप्रेस से। रात को चले और बाबा के भजन गाते-गाते अगले शाम शिरडी पहुँचे। वहाँ से ऑटो या टैक्सी करके आप साईं आश्रम, द्वारावती भक्त निवास या कोई होटल में जाके रात को रुके। सुबह - सुबह जल्दी उठकर आप 5:30 की आरती के लिए पहुँचे, और फिर फूल, नैवेद्य, नारियल खरीदकर, कतार में लगकर या फिर वीआईपी दर्शन का पास लेकर आप बड़े भक्ति भाव से दर्शन करते हैं बाबा के। पूरे मंदिर परिसर के दर्शन आराम से 2-3 घंटे तक करकर आप फिर नाश्ता ग्रहण करने वहाँ के श्री साईं प्रसादलय जाते हैं। वहाँ सिर्फ कुछ पैसों में आप बढ़िया बाबा का प्रसाद खाते हैं। फिर अपना बाकी का दिन आप आस-पास की जगहें घूमने, शाम की आरती देखने, कुछ खरीदारी करने जैसे और सब कामों में लगाकर, आप ट्रेन लेकर अगले दिन अपने मन में ख़ुशी और शांति लेकर वापस आ जाते हैं। अब अपनी आँखें खोलिये।” अब बताइए कैसा लगा आपको?

शार्क 1 - “आहा मज़ा आ गया। श्री साईं बाबा की जय!”

शार्क 2 - “ओहो! दिल को चैन पड़ गई।

शार्क 3 - “भाई मज़ा तो आ गया। यजमान और लक्ष्मीपति, आपका शार्क टैंक में स्वागत है। यह बताओ इस कहानी में तुम्हारा बिज़नेस कहाँ है?

लक्ष्मीपति : एक दम ठीक बात कही सर आपने। सर यह पूरी कहानी हमारा बिज़नेस है। जब आप शिरडी, तिरूपति, 4 धाम या कोई भी धर्म यात्रा करते हैं तो, आप सिर्फ़ अपने लिए पुण्य नहीं कमाते, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था को चलाते हैं। एक बार फिर से ध्यान दीजिये - आपने ट्रेन में सफर किया, ऑटो-टैक्सी ली, होटल में ठहरे, VIP दर्शन किए, पूजा का सामान लिया, नाश्ता किया, थोड़ा घूमे - फिरे, मंदिर में कुछ दान दिया, वापस से ट्रेन की और आये। इस पूरे सफ़र में आपने कितनी जगह पैसा खर्च किया है। सर औसतन एक भारतीय ऐसी तीर्थयात्राओं पर एक दिन में ₹2,717 खर्च करता है। कुल मिलाके ऐसे करोड़ों भक्त मिलके देश की धार्मिक अर्थव्यवस्था को करीब ₹3.20 लाख करोड़ का कर देते हैं। और आज यही बिज़नेस हम आपके सामने लेकर आये हैं।

धनवान - हमारी आपसे माँग है पूरे ₹30 करोड़ की, पूरे 25% Equity के बदले में। मेरा नाम है धनवान और यह हैं मेरे बड़े भाई लक्ष्मीपति। हम बनाना चाहते हैं दिल्ली में एक बहुत बड़ा श्री हिंदू मंदिर, जहां पर जब श्रद्धालु आएँ तो सारी की सारी सुविधाएँ - पूजा से लेके पेट-पूजा तक, और श्री राम से लेकर श्याम तक सारे भगवान, सब उन्हें एक जगह मिल जाएँ।

 

शार्क 2 - एक बात बताओ भाई, तुम कैसे इंसान हो जो मंदिर का बिज़नेस बना रहे हो? शर्म नहीं आती? भगवान से धंधा कर रहे हो।

लक्ष्मीपति : नहीं - नहीं सर, हम भगवान से धंधा नहीं कर रहे, बल्कि भगवान तक पहुँचने के रस्ते का धंधा कर रहे हैं। आप हमारे बिज़नेस मॉडल पर तो ध्यान दीजियेगा।

शार्क 1 - देंगे - देंगे पर पहले आप पर तो ध्यान दें। ज़रा पहले अपने बारे में बताइए थोड़ा - आपका बैकग्राउंड और ऐसे ‘बिज़नेस’ करने का कैसे ख़्याल आया?

लक्ष्मीपति : जी सर। हम दोनों भाई दिल्ली से हैं और आईआईटी बॉम्बे से मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर चुके हैं और 2022 बैच के गोल्ड मेडलिस्ट्स हैं। इस बिज़नेस का आईडिया हमें आईआईटी के दौरान पढ़ाई करते हुए ही आया। हमारे पिताजी श्री भक्त पुजारी जी दिल्ली में एक मंदिर के मुख्य पुजारी हैं, और उन्हीं से हमें रोज़ मंदिर जी जाने के संस्कार मिलें। एक दिन की बात है आज से कुछ महीने पहले मैं जब एक शाम मंदिर गया तो वहाँ के माली भैयाओं को पैसे गिनते हुए देखा दान के। मैं हैरान हो गया यह देख कर। इतने सारे नोट मैंने ज़िंदगी में इससे पहले फ़िल्मों में भी नहीं देखे थे। तब तक मुझे लगता था की मंदिर जाने से बस हमारा मन शांत होता है और अंदर पॉज़िटिविटी आती है। पर वो देख कर मैंने भाई के साथ पापा की मदद से थोड़ी जाँच - पड़ताल की और पता लगाया कि कैसे मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे भारत की इकॉनमी कि एक बहुत बड़ी लाइफ़लाइन हैं। भारत में औसतन एक साल में 143 करोड़ लोग तीर्थयात्रा करते हैं और ₹4.74 लाख करोड़ यात्रा में खर्च करते हैं। इसलिए हमने सोचा कि किसी बड़ी कंपनी में ₹1-2 करोड़ के पैकेज से अच्छा है की एक मंदिर स्थापित करके बढ़िया पैसे कमाए जाएँ। धनवान।”

धनवान

शार्क्स शुरुआत में हम बिज़नेसेस स्टार्ट करेंगे - पूजा के सामानों का, एक भगवान की मूर्तियों का, जो हम वहीं अपने कारीगरों को लगाकर बनाएँगे, एक भोजनशाला, जहां बहुत कम पैसे देकर आप भोजन कर सकेंगे, और एक बुक स्टोर, जहां से धार्मिक पुस्तकें, भजन की CDs खरीद सकेंगे। आगे फिर हम अगले स्टेज में एक टूर्स & ट्रैवल कंपनी चालू करेंगे, सिर्फ़ तीर्थयात्रा के सेक्टर के लिये। हम एक पोर्टल भी तैयार करेंगे जहां पर से भक्त VIP दर्शन, आरती, पूजाओं की बुकिंग कर सकते हैं, और गृह प्रवेश की पूजा, भूमि पूजन जैसी किसी भी घर की पूजाओं के लिए पंडित जी की बुकिंग कर सकते हैं।

शार्क 3 - सुनने में तो बड़ा अच्छा लग रहा है। यह तो सही बात है की मंदिर के क्षेत्र में बहुत संभावनाएँ हैं। पर मुझे एक बात बताओ कि यहाँ पर तुम से पहले 14 स्टार्टप्स आए थे, सब एक से एक। कोई हाइड्रोजन से चलने वाला प्लेन ला रहा है, कोई आलू से सोना बनाने की मशीन ला रहा है, कोई कूड़े और नाले की गैस का सिलेंडर बना रहा है, सबका व्यापारिक मॉडल एकदम ज़बरदस्त है। भला हम आपको पैसा क्यों दें? एक कुछ ऐसी स्टैंडाउट यू.एस.पी बताओ अपने मंदिर की जो तुम्हें औरों से बेहतर बनाएँ।

लक्ष्मीपति : सर आपने जैसा कहा कि और बहुत संभावना वाले उद्यमी यहाँ कतार में खडे़ हैं निवेश हासिल करने के लिए, वो सभी वाकई बहुत उम्दा योजनाएँ लेकर यहाँ इस मंच पर पेश हुए हैं। पर उन सबके साथ सर एक परेशानी है जिस पर आप ध्यान दीजियेगा - यह सभी व्यवसाय जो हैं, इनका कभी न कभी सब्सटीट्युट बाज़ार में आ ही जाएगा। आज हाइड्रोजन है, कल नाइट्रोजन हो जाएगा। और धंधा चौपट। और सब्सटीट्यूट ना भी हो पर फिर भी बहुत ताम-झाम है। हर 6 महीने में नया विज्ञापन देना, नए-नए ऐक्टर - क्रिकेटर पकड़ते रहना, हर साल एक नया प्रोडक्ट निकालते रहना, प्रतिस्पर्धा और न जाने क्या-क्या जो आप बेहतर जानते हैं। पर सर मंदिरों को एक बार बनाना होता है। भारत में 5 लाख हिन्दु मंदिर हैं, लाखों जैन मंदिर हैं, 7 लाख मस्जिद हैं और 35 हज़ार गिरिजाघर हैं, कुल मिलाकर 30,10,000 से अधिक धर्मस्थल हैं, परन्तु कहीं भी भीड़ कम नहीं हैं। और चाहे आप 10 और बनालो या चाहे 1000, भक्त वहाँ पहुँच ही जाएँगे। मंदिरों का कमाल ही कुछ ऐसा है। और सब बिजनेसों की तो एक लक्षित जनता ही ग्राहक होती है। पर मंदिरों में हर उम्र के, हर तबके के, लोग जाते हैं 12 महीने। यहाँ तक की जिन स्टार्टप्स के आपने नाम लिए, उनके फाउन्डर्स खुद मंदिर-मस्जिद जाकर अपनी सफलता के लिए मन्नत माँगते हुए पाए जाते हैं। अर्थव्यवस्था में तो आए दिन कहीं ना कहीं मंदी आती रहती है, पर मंदिरों में न आज तक भक्तों की मंदी आई है, न कभी आएगी। बिजनेसों में हफ़्ते का एक दिन छुट्टी का भी होता है, पर हमारे मामले में ऐसा कुछ है ही नहीं। रोज की कमाई है, और अपने काम-धंधे से छुट्टी लेकर लोग आते तो हमारे पास ही हैं। कोई वजह ही नहीं कि हमारे काम में सदाबहार मुनाफा ना हो। इससे बड़ी और क्या यू.एस.पी हो सकती है।

शार्क 1 - तुम्हारी बात में तो बहुत दम है। पर देखो मैं अपना पैसा ऐसे किसी काम में लगाना चाहता हूँ जिससे समाज का भला हो। मुझे बताओ थोड़ा इससे समाज को क्या फ़ायदा है?

धनवान - (हँसकर) कैसी बात करते हैं आप सर? मंदिर से ज़्यादा भला क्या सामाजिक काम होगा? लोग प्रभु के दर्शन करके अपने दुख - दर्द भूल जाते हैं और उन्हें आत्मिक सुकून और शांति मिलती है। कोई हाली - बीमारी हो, कोई परेशानी हो, शनि की साढ़े-साती हो, या राहुकाल हो, सब नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। एक मंदिर बनता है, हजार मजदूरों, कारीगरों, मालियों, संगीतकारों, मूर्तिकारों, गाइडों, कारिंदों और ना जाने कितने लोगों को रोज़गार मिलता है। और क्या चाहिए सामाजिक इससे ज्यादा? मंदिर जहाँ होते है, वहाँ की हवा कितनी सकारात्मक हो जाती है। और गिनने बैठे तो फिर सुब्ह ही हो जाएगी बस।

                                                                       (सब लोग उठके ताली बजाते हैं।)

शार्क 1 - भाई मजा आ गया तुम्हारी पिच में। कोई करे ना करे मैं तो ज़रूर पैसा लगाऊँगा तुम पर। और सारे स्टार्टअप्स तो आते रहेंगे, यह मौका बार-बार नहीं आएगा। मैं ३० करोड़ देने को तैयार हूँ। कोई नेगोशिएशन नहीं इक्विटी को लेकर, 25% में बात डन।

शार्क 2 - अरे 25 क्या मैं 20% में बात डन करता हूँ। मेरा जो डाइवर्स कम्पनीज़ में निवेश करने का तजुर्बा है, देखना वो तुम्हारे को कहाँ से कहाँ पहुँचा देगा।

 

शार्क 1 - 18%!

 

शार्क 2 - 15%!

 

शार्क 3 - (थोड़ा ज़ोर से) बस! तुम्हारे ऑफर हो गये हों तो मैं अब अपने दिल की बात कह दूँ।मैं तुम्हें अपनी पूरी ₹300 करोड़ की जायदाद देता हूँ। मुझे कुछ चाहिए नहीं बदले में। तुम्हारी पिच ने मेरी अंतरात्मा को जगा दिया है। सारी ज़िंदगी पैसा कमा लिया, अब समय आ गया है भगवान में ध्यान लगाने का। लो, मैं अभी अपनी सारी वसीयत तुम्हारे नाम करता हूँ। तुम्हारे मंदिर में ही मैं अब अपना सारा समय राम नाम जपूँगा बस। जय श्री राम!

                                           (सब हक्के-बके हो जाते हैं, और फिर पुजारी बंधुओं को उनकी डील मिल जाती है।)

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Harit Jain

Senior Editor, Editorial Board

Hindu College, Delhi University

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